जानकारी – ABKCS https://abkcs.com Akhil Bharatiya Kshatriya Chhipa Samaj Thu, 12 Oct 2023 09:05:55 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.5 https://abkcs.com/wp-content/uploads/2023/09/cropped-WhatsApp-Image-2023-09-24-at-7.49.00-PM-32x32.jpeg जानकारी – ABKCS https://abkcs.com 32 32 Sanghatan ki shakti https://abkcs.com/sanghatan-ki-shakti/ https://abkcs.com/sanghatan-ki-shakti/#respond Thu, 12 Oct 2023 08:54:31 +0000 https://abkcs.com/?p=285 ”छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन” की आवश्यकता क्यों है?*आधुनिक भौतिकवाद के अतिरेक में एवं वर्तमान राजनीतिक लोकतांत्रिक परिवेश में अनेक समाज बंधु प्रायः कहते रहते हैं कि जब वर्ण व्यवस्था प्रासंगिक नही रही, जाति व्यवस्था भी धीरे धीरे समाप्त होती दिख रही है तब *”छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन” की आवश्यकता क्यों है?*। ऐसे बंधुओं द्वारा यह सिद्ध करने की कोशिश भी होती है कि समाज में जितनी बुराइयां हैं, उन सबके लिए जाति-व्यवस्था ही दोषी है। परन्तु आक्षेपों के बावजूद भी जाति व्यवस्था अभी तक चल रही है और किसी न किसी रूप में आगे भी चलती रहेगी, यही इस बात का प्रमाण है कि यह व्यवस्था इतनी बुरी नहीं है, जितनी समझी जाती है। मेरे विचार से तो स्वार्थी तत्वों द्वारा दी गई सामाजिक बुराइयों / कुरीतियों ने ही जाति व्यवस्था को दूषित कर रखा है। वृहद स्तर पर देखें तो व्यवहारिक जातीय संगठन का अभाव और कमजोर होते जाना मनुष्य को व्यक्तिगत और सार्वजनिक रूप से कमजोर करता है। वास्तव में जातीय संगठन की कमजोरी तो सामाजिक बुराइयों / कुरीतियों का अंतर्जातीयकरण करती दिख रही है। ऐसी परिस्थिति में *छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज* जैसी अल्पसंख्यक जातियां सामाजिक कुरीतियों का दुष्परिणाम तो भोगेंगी ही साथ साथ संगठन के अभाव में शासन प्रशासन द्वारा मिलने वाली सुविधाओं से अनभिज्ञ भी रहेंगी और सुविधाओं का लाभ भी नही उठा पायेंगी। सारी सुविधायें अन्य जातियों के वे संपन्न लोग ही ले पायेंगे जिन्होंने पिछड़े न होते हुये भी कागजी आधार पर खुद को पिछड़ा प्रमाणित करवा लिया है। यहां तक कि दिन रात अपनी जाति / जातीयता को कोसने वाले महानुभाव भी जाति प्रमाणपत्र हाथ में लेकर शासन द्वारा दी जाने वाली जाति आधारित सुविधाओं को लेने में आगे रहते हैं। स्वार्थों, भौतिकता से भरी हुई तथाकथित आधुनिकता के दायरे से थोड़ा हटकर सोचा जाये कि *”छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन”* क्यों आवश्यक है और इसका क्या लाभ है। एक संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज निम्नानुसार उपयोगी हो सकता है।*(1) सामाजिक अपनत्व:-* सभी जानते और मानते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और इस नाते उसे आपसी व्यवहार और रिश्तों के माध्यम से अपनत्व की आवश्यकता होती है जहां वह अपनों के बीच में अपने दुख सुख बांटता है। इस कड़ी में वह अपनी परेशानियों के समाधान के लिये सलाह और मार्गदर्शन अपने जातीय संगठन से प्राप्त करने में सहजता अनुभव करता है। अब तो छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज में अनेक उदाहरण सामने आने लगे हैं जब संगठन विपत्ति के समय भुक्तभोगी को सहयोग के लिये अपील करता है और प्रायः सहयोग मिलता भी है।इस तरह से एक संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज एक सशक्त ट्रेड यूनियन के रूप में कार्य कर सकता है। यह समाज बंधुओं के तीज त्योहारों में उल्लास भरता है, खुशियों में सम्मिलित होता है, आपदा के समय मनोबल बढ़ाता है। सीधे सीधे कहा जाये तो सामाजिक संगठन की उपयोगिता समाज बंधुओं के जन्म से लेकर अंतिम संस्कार तक है। *(2) सामाजिक परम्परायें :-* जाति के अंदर परम्परायें सभी के लिये समान होती हैं कुछ परम्परायें सही होती हैं तो कुछ परम्पराओं / रूढ़ियों में समयानुसार परिवर्तन की आवश्यकता पड़ती है। अब चूंकि जाति बंधु अपनी परम्पराओं को जानते समझते हैं तो सही परम्पराओं का पालन और रूढ़ियों का सुधार सामूहिक रूप से कर सकते हैं। हम अपनी परम्पराओं को न तो दूसरी जातियों पर थोप सकते हैं और न ही उनकी परम्पराओं में सुधार कर सकते हैं। यहां तो संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज की अनिवार्यता ही है क्योंकि बिना परम्पराओं के कोई भी समुदाय होता ही नही है। *(3) जीवन साथी का चुनाव:-* कहने को तो अब अंतरजातीय विवाह बहुत हो रहे हैं इसका अर्थ तो यही निकलता है कि अन्य जातियों से जीवन साथी चुना जा सकता है परंतु अन्य परिवेश / जातियों से चुना गया जीवन साथी परिवार रिश्तों में सहजता से कभी नही स्वीकारा जाता। पूरे जीवन रिश्तों में उपेक्षा का भय बना रहता है। इससे बड़ी बात यह है कि जब युवक युवतियों के अभिभावक रिश्ते देखते हैं तो उनका दायरा जाति के अंदर ही हो सकता है वे इस दायरे से निकलकर अन्य जातियों से रिश्ते मांगने जा नही पाते। जहां युवक युवती स्वयं अन्य जातियों से जीवन साथी चुनते हैं तो विवाद की स्थिति में कोई समझाने वाला ही नही होता। अर्थात यदि जीवन साथी सजातीय है तो वैवाहिक रिश्तों को बनाने से लेकर बचाने के लिये संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज बड़ी भूमिका निभा सकता है। विजातीय संबंधों में तो किसी का कोई जोर रहता ही नही है।*(4) आपसी सहयोग की भावना:–* हम अपनी जाति-व्यवस्था के दायरे में सदस्यों में सद्भावना एवं सहयोग की भावना का विकास कर सकते हैं। मिलकर एक आर्थिक व्यवस्था का निर्माण करके जरूरतमंदों की सहायता कर सकते हैं, जिससे राज्य-सहायता की आवश्यकता कम पड़ेगी वैसे भी संबंधित विभागों की जटिल प्रक्रिया के कारण बहुतेरे लोग शासन से सहायता ले नही पाते। जाति या समाज बंधुओं के बीच जानकारियों का आदान प्रदान सहज भाव से हो सकता है और शासन द्वारा सहयोग दिलाने में जानकार लोगों का मार्गदर्शन बहुत उपयोगी होता है।*(5) जातिगत व्यवसायों का संरक्षण:–* प्रत्येक जाति का एक विशिष्ट व्यवसाय होता है, जिससे न केवल नयी पीढ़ी का भविष्य निश्चित हो जाता है, अपितु उसे उस व्यवसाय को सीखने का भी उचित अवसर प्राप्त होता है। चूंकि जाति के साथ जातिगत व्यवसाय का तादात्म्य होता है, व्यवसाय / कारीगरी में गर्व भी अनुभव होता है। प्राचीन भारत में कारीगरों की कई पीढ़ियां होती थीं, जो अपने कौशल में सिद्धहस्त रहती थी और जातिगत व्यवसाय को अपने हाथों से निकलने नही देती थीं। *मुझे लगता है यहां हमने एक बड़ी चीज खो दी है। छीपा रंगारी का कलात्मक व्यवसाय हम अपने बीच से समाप्त कर चुके हैं। क्या यह उचित नही होता कि हम संगठित रहकर अपनी छीपा रंगारी कला को नई तकनीकों के साथ अपने बीच जीवित रखते। रोजगार का एक साधन हमारे बीच से निकल कर बड़े उद्योगपति वर्ग के पास चला गया।* और यह केवल हमारे साथ नही हुआ बल्कि कारीगरी, क्राफ्ट, कला के आधार पर बनी अनेक जातियां अपने जमे जमाये व्यवसाय छोड़कर रोजगार की आस में भटकने को विवश हैं। *(6) सांस्कारिक शुद्धता:-* अन्य जातियों के समान ही छीपा रंगारी क्षत्रिय संगठन भी अंतरजातीय विवाहों का समर्थन नही करता। जाति के अंदर विवाह होने से परिवारों में दो जातियों के बीच होने वाले संस्कारों और परम्पराओं के बीच टकराव की आशंका नही रहती। यद्यपि इसके बाद भी अंतरजातीय विवाह होते ही हैं कभी युवक-युवतियों के आपसी लगाव के कारण होते हैं तो कभी माता-पिता, युवक-युवतियों की किसी विवशता के कारण होते हैं। मेरे विचार से अंतरजातीय विवाहों का विरोध करने की बजाय हमें जातीय विवाहों के लाभों से नयी पीढ़ी को अवगत कराना चाहिये। सामाजिक कुरीतियों को समाप्त कर समाज को युवाओं के लिये अधिक आकर्षक बनाने की आवश्यकता है ताकि कोई भी निराश होकर छीपा रंगारी जाति से विमुख न हो। गरीब अमीर सभी की उपयुक्त रिश्तों की आकांक्षाये समाज के अंदर उपलब्ध आर्थिक साधनों में दहेज/मांग मुक्त वैवाहिक कार्यक्रमों में पूरी हों यह सुनिश्चित करना होगा। यद्यपि किसी गरीब का अंतरजातीय विवाह करना उसे जाति से दूर कर देता है संपन्न वर्ग को समाज/जाति में देर सबेर स्वीकार कर ही लिया जाता है। इसलिये अन्तर्जातीय विवाह करने वालों पर प्रतिबंध लगाने की बजाय अपने जातीय संगठन को ही सामाजिक सुधारों के साथ व्यवस्थित किया जाये। इससे हम अपनी जातीय शुद्धता के साथ प्रगतिशील छीपा रंगारी समाज की आवश्यकता को साकार कर सकेंगे।*(7) पारिवारिक / कौटुम्बिक न्याय में सहजता:-* सभी जानते हैं कि विवाद, कलह, अपराध, पारिवारिक संपत्ति के बटवारे की स्थिति में सरकारी न्याय व्यवस्था से न्याय पाना कितना खर्चीला होता है, कितना लंबा समय लगता है, इस समय व्यक्ति कितना तनावग्रस्त रहता है कई बार तो न्याय मिलने के बाद भी उस न्याय का औचित्य नही रह जाता। गरीब आदमी तो कोर्ट कचहरी जाने की हैसियत भी नही रखता। आजकल तो छोटे छोटे पारिवारिक विवाद भी अदालतों में पहुंच जाते हैं और अंततः संबंधित परिवारों की टूट के कारण बनते हैं। सुनवाई सुलभ न होने, सही राह बताने वाले मंच के न होने से, परिवारों में सामंजस्य न बन पाने के कारण कई दुर्भाग्यपूर्ण हादसे हो जाते हैं। निराश होकर लोग अपनी जान से भी खेल जाते हैं बाद में पता चलता है कि इतना निराश होने का कारण कोई बड़ा नही था। ऐसी स्थिति से उबारने के लिये जातीय संगठनों / पंचायतों की बड़ी भूमिका रही है, जातीय संगठनों की न्याय व्यवस्था बड़ी सहजता से संबंधितों को संतुष्ट कर सकती है। क्योंकि वहां सभी पक्षों की सुनने वाले अपने ही होते हैं, कम समय में संदेह/समस्याओं का हल मिलता है। समाधान देकर सामाजिक निर्णयों का पालन देखने वाले हितैषी समाज बंधु रिश्तेदार होते हैं। छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज संगठन ऐसी कल्याणकारी और सहज सुलभ न्याय व्यवस्था को पुनः जाग्रत कर सकता है और परिवार, कुटुम्ब, जाति के बीच में विवाद की स्थिति में सबको ससम्मान संतुष्ट करते हुये कम समय में, बिना अदालत वकीलों के चक्कर लगाये न्याय दे सकता है। अपनों के बीच में अपनी समस्यायें रखने का अवसर परिवारों को टूटने से एवं अनपेक्षित घटनाओं से बचा सकता है।*(8) अनाथ / असहाय बच्चों का पालन पोषण:-* दुर्भाग्य से यदि किसी बच्चे के माता पिता न रहें तो ऐसे बच्चों के पालन पोषण के लिये बच्चों के अनुकूल अपनत्व से भरे वातावरण में पालन पोषण की व्यवस्था जाति के अंदर अधिक अच्छी हो सकती है ऐसे बच्चे पारिवारिक रिश्तों जैसा प्यार पा सकते हैं यदि संगठित समाज बंधु अनाथ बच्चों के पालक परिवार को यथोचित मार्गदर्शन और सहयोग दे। यहां भी संगठित छीपा रंगारी समाज अपने जाति बंधुओं की नई पौध को मुरझाने से बचा सकता है।उपरोक्त के अतिरिक्त एक संगठित छीपा रंगारी क्षत्रिय समाज जातिबंधुओं के लिये और भी लाभदायक सिद्ध होगा, इसलिये हमें जातीय आधार पर संगठित होना ही चाहिये। इससे हमारी राष्ट्रीय और वैश्विक पहचान बनेगी। एक शिक्षित, सुसंस्कृत, सभ्य जाति के रूप में जातिबंधु संगठित होकर अपने जाति बंधुओं की उन्नति के साथ अपने धर्म और राष्ट्र के लिये भी समर्पित रहेंगे।

निवेदक अशोक कुमार राठौर
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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राजपूतों की वंशावली https://abkcs.com/raajputo-ki-vanshavali/ https://abkcs.com/raajputo-ki-vanshavali/#respond Tue, 26 Sep 2023 18:31:22 +0000 https://abkcs.com/?p=218 राजपूतों की वंशावली

चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण
भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान
चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण.”

अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।

सूर्य वंश की दस शाखायें:-

१. गहलोत/सिसोदिया २. राठौड ३. बडगूजर/सिकरवार ४. कछवाह ५. दिक्खित ६. गौर ७. गहरवार ८. डोगरा ९.बल्ला १०.वैस

चन्द्र वंश की दस शाखायें:-

१.जादौन२.भाटी३.तोमर४.चन्देल५.छोंकर६.झाला७.सिलार८.वनाफ़र ९.कटोच१०. सोमवंशी

अग्निवंश की चार शाखायें:-

१.चौहान२.सोलंकी३.परिहार ४.पमार.

ऋषिवंश की बारह शाखायें:-

१.सेंगर२.कनपुरिया३.गर्गवंशी(हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त के वंशज)४.दायमा५.गौतम६.अनवार (राजा जनक के वंशज)७.दोनवार८.दहिया(दधीचि ऋषि के वंशज)९.चौपटखम्ब १०.काकन११.शौनक १२.बिसैन

चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-

१.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल८.शम्भरी ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा१९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर.

क्षत्रिय जातियो की सूची

क्रमांकनामगोत्रवंशस्थान और जिला
१.सूर्यवंशीभारद्वाज, कश्यपसूर्यमहाराजा राजपूताना झारखंड
२.गहलोतकश्यप, बैजवापेडसूर्यमेवाड़ और पूर्वी जिले
३.सिसोदियाकश्यप,बैजवापेडगहलोतमहाराणा उदयपुर स्टेट
४.कछवाहागौतम,वशिष्ठ,मानवसूर्यमहाराजा जयपुर
५.राठौडगौतम,कश्यप,भारद्वाज,शान्डिल्य,अत्रिगहरवारमहाराजा जोधपुर ,बीकानेर,किशनगढ़ और पूर्व और मालवा
६.सोमवंशीअत्रयचन्द्रप्रतापगढ और जिला हरदोई
७.खेरवावंशीकश्यपचन्द्रराजकरौली राजपूताने में
८.भाटीअत्रयजादौनमहारजा जैसलमेर राजपूताना
९.जाडेचाअत्रययमवंशीमहाराजा कच्छ भुज
१०.जावतअत्रयजादौनशाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा
११.तोमरअत्रय, व्याघ्र, गार्गेयचन्द्रपाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर
१२.कटियारव्याघ्रतोंवरधरमपुर का राज और हरदोई
१३.पालीवारव्याघ्रचन्द्रगोरखपुर
१४.सत्पोखरियाभारद्वाजराठौड(चाँपावत)मऊ जिला घोसी, इंदारा
१५.परिहार, वरगाहीकौशल्य, कश्यपअग्निबांदा जिला, रीवा राज्य में बघेलखंड
१६.तखीकौशल्यपरिहारपंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में
१७.पंवारवशिष्ठअग्निमालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया
१८.सोलंकीभारद्वाजअग्निराजपूताना मालवा सोरों जिला एटा
१९.चौहानवत्सअग्निराजपूताना पूर्व और सर्वत्र
२०.हाडावत्सचौहानकोटा बूंदी और हाडौती देश
२१.खींचीवत्सचौहानखींचीवाडा मालवा ग्वालियर
२२.भदौरियावत्सअग्निनौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर
२३.देवडावत्सचौहानराजपूताना सिरोही राज
२४.शम्भरीवत्सचौहाननीमराणा रानी का रायपुर पंजाब
२५.बच्छगोत्रीवत्सचौहानप्रतापगढ सुल्तानपुर
२६.राजकुमारवत्सचौहानदियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला
२७.पवैयावत्सचौहानग्वालियर
२८.गौर,गौडभारद्वाजसूर्यशिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ
२९.वैसभारद्वाजसूर्यआजमगढ उन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में
३०.गहरवारकश्यप, भारद्वाजसूर्यमाडा, हरदोई, वनारस, उन्नाव, बांदा पूर्व
३१.सेंगरगौतमब्रह्मक्षत्रियजगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन
३२.कनपुरियाभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियपूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं
३३.बिसेनअत्रय,वत्स,भारद्वाज,पाराशर,शान्डिल्यब्रह्मक्षत्रियगोरखपुर गोंडा प्रतापगढ महराजगंज (निचलौल के उत्तर क्षेत्र के समीप) हैं
३४.निकुम्भवशिष्ठ,भारद्वाजसूर्यमऊ गोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर
३५.श्रीनेतभारद्वाजनिकुम्भगाजीपुर बस्ती गोरखपुर
३६.कटहरियावशिष्ठ्याभारद्वाज,सूर्यबरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर
३७.वाच्छिलअत्रयवच्छिलचन्द्रमथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर
३८.बढगूजरवशिष्ठसूर्यअनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर
३९.झालामरीच, कश्यप, मार्कण्डेचन्द्रधागधरा मेवाड झालावाड कोटा
४०.गौतमगौतमब्रह्मक्षत्रियराजा अर्गल फ़तेहपुर
४१.रैकवारभारद्वाजसूर्यबहरायच सीतापुर बाराबंकी
४२.करचुल हैहयकृष्णात्रेयचन्द्रबलिया फ़ैजाबाद अवध
४३.चन्देलचान्द्रायनचन्द्रवंशीगिद्धौर ,कानपुर, फ़र्रुखाबाद, बुन्देलखंड, पंजाब, गुजरात
४४.जनवारकौशल्यचन्द्रवंशीबलरामपुर अवध के जिलों में
४५.बहेलियाभारद्वाज,वैस (उप जाति सिसोदिया )की गोद सिसोदियारायबरेली बाराबंकी
४६.दीत्ततकश्यपसूर्यवंश की शाखाउन्नाव, बस्ती, प्रतापगढ, जौनपुर, रायबरेली ,बांदा
४७.सिलारशौनिकचन्द्रसूरत राजपूतानी
४८.सिकरवारभारद्वाज, सांक्रित्यनबढगूजरग्वालियर, आगरा, गाजीपुर और उत्तरप्रदेश में
४९.सुरवारगर्गसूर्यकठियावाड में
५०.सुर्वैयावशिष्ठयदुवंशकाठियावाड
५१.मोरीब्रह्मगौतमसूर्यमथुरा ,आगरा ,धौलपुर
५२.टांक (तत्तक)शौनिकनागवंशमैनपुरी और पंजाब
५३.गुप्तगार्ग्यचन्द्रअब इस वंश का पता नही है
५४.कौशिककौशिकचन्द्रबलिया, आजमगढ, गोरखपुर
५५.भृगुवंशीभार्गवब्रह्मक्षत्रियवनारस, बलिया, आजमगढ, गोरखपुर
५६.गर्गवंशीगर्गब्रह्मक्षत्रियआजमगढ, नरसिंहपुर सुल्तानपुर,अवध,बस्ती,फैजाबाद
५७.पडियारिया,देवल,सांकृतसामब्रह्मक्षत्रियराजपूताना
५८.ननवगकौशिकचन्द्रजौनपुर जिला
५९.वनाफ़रपाराशर,कश्यपचन्द्रबुन्देलखन्ड बांदा वनारस
६०.जैसवारकश्यपयदुवंशीमिर्जापुर एटा मैनपुरी
६१.चौलवंशभारद्वाजसूर्यदक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में
६२.निमवंशीकश्यपसूर्यसंयुक्त प्रांत
६३.वैनवंशीवैन्यसोमवंशीमिर्जापुर
६४.दाहिमागार्गेयब्रह्मक्षत्रियकाठियावाड राजपूताना
६५.पुण्डीरकपिल, पुलस्त्यब्रह्मक्षत्रियपंजाब, गुजरात, रींवा, यू.पी.
६६.तुलवाआत्रेयचन्द्रराजाविजयनगर
६७.कटोचकश्यपचन्द्रराजानादौन कोटकांगडा
६८.चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावतवशिष्ठपंवार की शाखामलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड
६९.अहवनवशिष्ठचावडा,कुमावतखेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी
७०.डौडियावशिष्ठपंवार शाखाबुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब
७१.गोहिलबैजबापेणगहलोत शाखाकाठियावाड
७२.बुन्देलाकश्यपगहरवारशाखाबुन्देलखंड के रजवाडे
७३.काठीकश्यपगहरवारशाखाकाठियावाड झांसी बांदा
७४.जोहियापाराशरचन्द्रपंजाब देश मे
७५.गढावंशीकांवायनचन्द्रगढावाडी के लिंगपट्टम में
७६.मौखरीअत्रयचन्द्रप्राचीन राजवंश था
७७.लिच्छिवीकश्यपसूर्यप्राचीन राजवंश था
७८.बाकाटकविष्णुवर्धनसूर्यअब पता नहीं चलता है
७९.पालकश्यपसूर्ययह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है
८०.सैनअत्रयब्रह्मक्षत्रिययह वंश भी भारत में बिखर गया है
८१.कदम्बमान्डग्यब्रह्मक्षत्रियदक्षिण महाराष्ट्र मे हैं
८२.पोलचभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियदक्षिण में मराठा के पास में है
८३.बाणवंशकश्यपअसुरवंशश्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में
८४.काकुतीयभारद्वाजचन्द्र,प्राचीन सूर्य थाअब पता नही मिलता है
८५.सुणग वंशभारद्वाजचन्द्र,पाचीन सूर्य था,अब पता नही मिलता है
८६.दहियागौतमब्रह्मक्षत्रियमारवाड में जोधपुर
८७.जेठवाकश्यपहनुमानवंशीराजधूमली काठियावाड
८८.मोहिलवत्सचौहान शाखामहाराष्ट्र मे है
८९.बल्लाभारद्वाज,कश्यपसूर्यकाठियावाड मे मिलते हैं
९०.डाबीवशिष्ठयदुवंशराजस्थान
९१.खरवडवशिष्ठयदुवंशमेवाड उदयपुर
९२.सुकेतभारद्वाजगौड की शाखापंजाब में पहाडी राजा
९३.पांड्यअत्रयचन्दअब इस वंश का पता नहीं
९४.पठानियापाराशरवनाफ़रशाखापठानकोट राजा पंजाब
९५.बमटेलाशांडल्यविसेन शाखाहरदोई फ़र्रुखाबाद
९६.बारहगैयावत्सचौहानगाजीपुर
९७.भैंसोलियावत्सचौहानभैंसोल गाग सुल्तानपुर
९८.चन्दोसियाभारद्वाजवैससुल्तानपुर
९९.चौपटखम्बकश्यपब्रह्मक्षत्रियजौनपुर
१००.धाकरेभारद्वाज(भृगु)ब्रह्मक्षत्रियआगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर
१०१.धन्वस्तयमदाग्निब्रह्मक्षत्रियजौनपुर आजमगढ वनारस
१०२.धेकाहाकश्यपपंवार की शाखाभोजपुर शाहाबाद
१०३.दोबर(दोनवार)वत्स या कश्यपब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर
१०४.हरद्वारभार्गवचन्द्र शाखाआजमगढ
१०५.जायसकश्यपराठौड की शाखारायबरेली मथुरा
१०६.जरोलियाव्याघ्रपदचन्द्रबुलन्दशहर
१०७.जसावतमानव्यकछवाह शाखामथुरा आगरा
१०८.जोतियाना(भुटियाना)मानव्यकश्यप,कछवाह शाखामुजफ़्फ़रनगर मेरठ
१०९.घोडेवाहामानव्यकछवाह शाखालुधियाना होशियारपुर जालन्धर
११०.कछनियाशान्डिल्यब्रह्मक्षत्रियअवध के जिलों में
१११.काकनभृगुब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर आजमगढ
११२.कासिबकश्यपकछवाह शाखाशाहजहांपुर
११३.किनवारकश्यपसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार में
११४.बरहियागौतमसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार
११५.लौतमियाभारद्वाजबढगूजर शाखाबलिया गाजी पुर शाहाबाद
११६.मौनसमौनकछवाह शाखामिर्जापुर प्रयाग जौनपुर
११७.नगबकमानव्यकछवाह शाखाजौनपुर आजमगढ मिर्जापुर
११८.पलवारव्याघ्रसोमवंशी शाखाआजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर
११९.रायजादेपाराशरचन्द्र की शाखापूर्व अवध में
१२०.सिंहेलकश्यपसूर्यआजमगढ परगना मोहम्दाबाद
१२१.तरकडकश्यपदिक्खित शाखाआगरा मथुरा
१२२.तिसहियाकौशल्यपरिहारइलाहाबाद परगना हंडिया
१२३.तिरोताकश्यपतंवर की शाखाआरा शाहाबाद भोजपुर
१२४.उदमतियावत्सब्रह्मक्षत्रियआजमगढ गोरखपुर
१२५.भालेवशिष्ठपंवारअलीगढ
१२६.भालेसुल्तानभारद्वाजवैस की शाखारायबरेली लखनऊ उन्नाव
१२७.जैवारव्याघ्रतंवर की शाखादतिया झांसी बुन्देलखंड
१२८.सरगैयांव्याघ्रसोमवंशहमीरपुर बुन्देलखण्ड
१२९.किसनातिलअत्रयतोमरशाखादतिया बुन्देलखंड
१३०.टडैयाभारद्वाजसोलंकीशाखाझांसी ललितपुर बुन्देलखंड
१३१.खागरअत्रययदुवंश शाखाजालौन हमीरपुर झांसी
१३२.पिपरियाभारद्वाजगौडों की शाखाबुन्देलखंड
१३३.सिरसवारअत्रयचन्द्र शाखाबुन्देलखंड
१३४.खींचरवत्सचौहान शाखाफ़तेहपुर में असौंथड राज्य
१३५.खातीकश्यपदिक्खित शाखाबुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा
१३६.आहडियाबैजवापेणगहलोतआजमगढ
१३७.उदावतगौतमराठौडपाली
१३८.उजैनेश्रवणपंवारआरा डुमरिया
१३९.अमेठियाभारद्वाजगौडअमेठी लखनऊ सीतापुर
१४०.दुर्गवंशीकश्यपदिक्खितराजा जौनपुर राजाबाजार
१४१.बिलखरियाकश्यपदिक्खितप्रतापगढ उमरी राजा
१४२.डोगराकश्यपसूर्यकश्मीर राज्य और बलिया
१४३.निर्वाणवत्सचौहानराजपूताना (राजस्थान)
१४४.जाटूव्याघ्रतोमरराजस्थान,हिसार पंजाब
१४५.नरौनीमानव्यकछवाहाबलिया आरा
१४६.भनवगभारद्वाजकनपुरियाजौनपुर
१४७.गिदवरियावशिष्ठपंवारबिहार मुंगेर भागलपुर
१४८.रक्षेलकश्यपसूर्यरीवा राज्य में बघेलखंड
१४९.कटारियाभारद्वाजसोलंकीझांसी मालवा बुन्देलखंड
१५०.रजवारवत्सचौहानपूर्व मे बुन्देलखंड
१५१.द्वारव्याघ्रतोमरजालौन झांसी हमीरपुर
१५२.इन्दौरियाव्याघ्रतोमरआगरा मथुरा बुलन्दशहर
१५३.छोकरअत्रययदुवंशअलीगढ मथुरा बुलन्दशहर
१५४.जांगडावत्सचौहानबुलन्दशहर पूर्व में झांसी
१५५.शौनकशौनभ्रृगुवंशीइलाहाबाद
१५६.बघेलकश्यप या भारद्वाजसोलंकीरीवा राज्य में बघेलखंड
१५७.दिक्खितकश्यपसूर्यबुन्देलखंड
१५८.बंधलगोतीभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियअमेठी,सुल्तानपुर
१५९.कलहंसअंगिरसपरिहारप्रतापगढ,बहरायच,गोरखपुर,बस्ती
१६०.बेरुआरभारद्वाजतोमरबलिया,आजमगढ,मऊ
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भुजरिया पर्व https://abkcs.com/bhujaliya-parv/ https://abkcs.com/bhujaliya-parv/#respond Tue, 26 Sep 2023 18:26:40 +0000 https://abkcs.com/?p=214 भुजरिया पर्व

श्रावण मास की पूर्णिमा रक्षाबंधन के अगले दिन भुजरिया पर्व मनाया जाता है। यह पर्व मुख्‍य रूप से बुंदेलखंड का लोकपर्व है। अच्छी बारिश, फसल एवं सुख-समृद्धि की कामना के लिए रक्षाबंधन के दूसरे दिन भुजरिया पर्व मनाया जाता है। इसे कजलियों का पर्व भी कहते हैं। कजलियां पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है। आइये जानते हैं इस पर्व के बारे में सब कुछ।

भुजरिया पर्व में लोग एक दूसरे से मिलकर उन्हें गेहूं की भुजरिया देते हैं और इस पर्व की शुभकामनाएं भी देते हैं ये त्योहार अच्छी वर्षा होन, फसल होने और जीवन में सुख समृद्धि की कामना के साथ यह त्योहार मनाया जाता है आपको बता दें कि भुजरिया का त्योहार बुंदेलखंड में सबसे अधिक धूमधाम के साथ मनाया जाता है तो आज हम आपको अपने इस लेख दवारा भुजरिया पर्व से जुड़ी जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।

क्‍या है भुजरिया

जल स्त्रोतों में गेहूं के पौधों का विसर्जन किया जाता है। सावन के महीने की अष्टमी और नवमीं को छोटी – छोटी बांस की टोकरियों में मिट्टी की तह बिछाकर गेहूं या जौं के दाने बोए जाते हैं। इसके बाद इन्हें रोजाना पानी दिया जाता है। सावन के महीने में इन भुजरियों को झूला देने का रिवाज भी है। तकरीबन एक सप्ताह में ये अन्नाा उग आता है, जिन्हें भुजरियां कहा जाता है।

भुजरियों की पूजा का महत्‍व

इन भुजरियों की पूजा अर्चना की जाती है एवं कामना की जाती है, कि इस साल बारिश बेहतर हो जिससे अच्छी फसल मिल सकें। श्रावण मास की पूर्णिमा तक ये भुजरिया चार से छह इंच की हो जाती हैं। रक्षाबंधन के दूसरे दिन इन्हें एक-दूसरे को देकर शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद देते हैं। बुजुर्गों के मुताबिक ये भुजरिया नई फसल का प्रतीक है। रक्षाबंधन के दूसरे दिन महिलाएं इन टोकरियों को सिर पर रखकर जल स्त्रोतों में विसर्जन के लिए ले जाती हैं।

यह है भुजरिया की कथा

इसकी कथा आल्हा की बहन चंदा से जुड़ी है। इसका प्रचलन राजा आल्हा ऊदल के समय से है। आल्हा की बहन चंदा श्रावण माह से ससुराल से मायके आई तो सारे नगरवासियों ने कजलियों से उनका स्वागत किया था। महोबा के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरता आज भी उनके वीर रस से परिपूर्ण गाथाएं बुंदेलखंड की धरती पर बड़े चाव से सुनी व समझी जाती है। बताया जाता है कि महोबे के राजा के राजा परमाल, उनकी बिटिया राजकुमारी चन्द्रावलि का अपहरण करने के लिए दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबे पै चढ़ाई कर दी थी। राजकुमारी उस समय तालाब में कजली सिराने अपनी सखी – सहेलियन के साथ गई थी। राजकुमारी को पृथ्वीराज हाथ न लगाने पाए इसके लिए राज्य के बीर-बांकुर (महोबा) के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरतापूर्ण पराक्रम दिखलाया था। इन दो वीरों के साथ में चन्द्रावलि का ममेरा भाई अभई भी उरई से जा पहुंचे। कीरत सागर ताल के पास में होने वाली ये लड़ाई में अभई वीरगति को प्यारा हुआ, राजा परमाल को एक बेटा रंजीत शहीद हुआ। बाद में आल्हा, ऊदल, लाखन, ताल्हन, सैयद राजा परमाल का लड़का ब्रह्मा, जैसें वीर ने पृथ्वीराज की सेना को वहां से हरा के भगा दिया। महोबे की जीत के बाद से राजकुमारी चन्द्रवलि और सभी लोगों अपनी-अपनी कजिलयन को खोंटने लगी। इस घटना के बाद सें महोबे के साथ पूरे बुन्देलखण्ड में कजलियां का त्यौहार विजयोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा है। कजलियों (भुजरियां) पर गाजे-बाजे और पारंपरिक गीत गाते हुए महिलाएं नर्मदा तट या सरोवरों में कजलियां खोंटने के लिए जाती हैं। हरियाली की खुशियां मनाने के साथ लोग एक – दूसरे से मिलेंगे और बड़े बुजुर्ग कजलियां देकर धन – धान्य से पूरित क हने का आशीर्वाद देंगे।

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